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कानून वापसी…सरेंडर या समझदारी! आखिर 14 महीने बाद अपने फैसले से क्यों पीछे हटी मोदी सरकार?

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रायपुर । Modi Government Surrender in Front Farmer सिंघु और टिकरी समेत दिल्ली बॉर्डर पर जारी किसान आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने कृषि कानूनों को वापस करने का ऐलान किया। प्रकाश पर्व के मौके पर देश के नाम संबोधन में पीएम मोदी ने कहा कि हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए, इसलिये केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला ले रही है। पीएम के ऐलान के बाद सियासी दलों की अलग-अलग प्रतिक्रिया भी सामने आई। अब सवाल ये है कि आखिर 14 महीने बाद अपने फैसले से क्यों पीछे हटी मोदी सरकार? जब केंद्र इतने सोच-विचार के बाद कानून लाई थी, तो वापसी का फैसला क्यों? अगर वापसी करना ही था तो इतनी देर क्यों? सवाल ये भी कि तीनों कृषि कानून की वापसी का फैसला मोदी सरकार का सरेंडर है या फिर समझदारी?

Modi Government Surrender in Front Farmer लंबे समय से जिन 3 कृषि कानूनों पर संसद से सड़क तक घमासान मचा हुआ था। आखिरकार केंद्र की मोदी सरकार ने उसे वापस लेने का फैसला किया। 17 सितंबर 2020 को कृषि कानून सदन में पास हुआ था और ठीक 14 महीने बाद केंद्र सरकार ने कानून को वापस लेने का ऐलान किया। प्रकाश पर्व के मौके पर देश के नाम 18 मिनट के संबोधन में पीएम मोदी ने ये बड़ा ऐलान किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार तीनों कानून किसानों के हित में नेक नीयत से लाई थी, लेकिन कुछ किसानों को समझाने में नाकाम रहे।

जाहिर तौर पर कृषि कानूनों का किसान संगठन पहले दिन से विरोध कर रहे थे। इस बीच सरकार और किसानों के बीच मीटिंग्स का लंबा दौर भी चला लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, क्योंकि किसान अपनी मांग पर अड़े रहे। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत इस आंदोलन का बड़ा चेहरा बनकर उभरे। आंदोलन को एक साल पूरा होने से पहले ही केंद्र सरकार किसानों के जिद के आगे झुक गई। कानून वापसी के फैसले पर पक्ष और विपक्ष की ओर से लगातार प्रतिक्रिया आ रही है। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र और किसानों की जीत बताया। दूसरी ओर बीजेपी ने पीएम मोदी के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि किसान हित हमेशा से केंद्र सरकार की प्राथमिकता रही है।

बहरहाल केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के फैसले के बाद भी सियासत जारी है। कांग्रेस आरोप लगा रही है कि आगामी चुनावों को देखते हुए ये फैसला लिया गया है। ऐसे में कृषि कानून वापसी के मायने क्या है? क्या वाकई चुनावों की वजह से केंद्र सरकार ने ये फैसला लिया? या फिर कृषि कानून को समझा पाने में नाकाम रही सरकार? क्या इसके जरिये किसानों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की गई है? क्या इस कदम से देश में कृषि सुधारों की कोशिश को बड़ा झटका लगेगा? बहरहाल सरकार अपने फैसले से भले पीछे हट गई हो लेकिन किसान संगठन अभी भी अड़े हुए है। उनका साफ कहना है कि जब तक संसद में कानून वापस नहीं लिया जाता, तब तक वो धरने पर बैठे रहेंगे।

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